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पल्लीवाल जाति की उत्पत्ति एव विकास
पल्लीवाल जाति की उत्पत्ति एवं उसके विकास के सम्बन्ध मे चर्चा करने से पूर्व हम एक-एक करके इन निष्कर्षों पर गम्भीरतापूर्वक विचार करेगे। [२.२] पल्लोवाल-गच्छ
श्वेताम्बर जैन साहित्य मे 84 गच्छो का वर्णन पाता है। पल्लकीय, पालकीय, पल्ली या पल्लीवाल गच्छ उनमे से एक है। इस गच्छ का जैन धर्म के प्रचार व प्रसार में बहुत योगदान रहा है । इस गच्छ के प्राचार्यों ने बहुत से ग्रन्थो की रचनाएँ की तथा कई मूर्तियो की प्रतिष्ठा भी कराई।
जैनाचार्य श्री प्रात्मानन्द जन्म-शताब्दी स्मारक ग्रन्थ' (1936) म प्रकाशित श्री अगर चन्द जी नाहटा के लेख 'पल्लीवाल गच्छ पट्टावली'' के अनुसार पल्लीवाल गच्छ की स्थापना पाली नगर (मारवाड) में भगवान महावीर के पट्ट पर स्थित 17 वे प्राचार्य जशोदेव (यशोदेव) सूरि द्वारा सम्बत् 329 वैसाख शुक्ला 5 को हुई। लेकिन थी लोढा जो इस गच्छ की उत्पत्ति के समय से महमन नही है।
गुजराती मल के ग्रन्थ जैन परम्परा नो इतिहास' भाग-2 के अनुसार प्राचीन गुजरात का पाटण नगर, श्रीमाल नगर सवत् 1078 मे भग हुआ। तब वहाँ के महाजन, ब्राह्मण वगैरह पाली (मारवाड) मे जाकर रहने लगे। तब से पाली विशेष रूप से
आबाद हुआ तथा व्यापार का केन्द्र बना। बाद मे ये लोग पाली मे रहने के कारण पल्लीवाल नाम से पहचाने जाने लगे। इसी पाली नगर से सवत् 1150 मे प्राचार्य प्रद्योतन सूरि के शिष्य आचार्य इन्द्रदेव सूरि से श्वेताम्बर पल्लीवाल गच्छ तथा श्वेताम्बर पल्लीवाल जाति निकली।
पाली मे पूर्णभद्र वीर जिनालय को भगवान श्री महावीर स्वामी तथा भगवान श्री आदिनाथ की प्रतिमानो पर विक्रम संवत् 1144 तथा 1151 के लेख है जिनमे 'पल्लकीय प्रद्योतनाचार्य