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द्वितीय अध्याय पल्लीवाल जाति की उत्पत्ति एवं विकास
[२.१] प्रचलित मान्यतायें____ लगभग 25 वर्ष पूर्व 'पल्लीवाल जैन इतिहास' (लेखकश्री दौलतसिह लोढा 'अरविन्द') का प्रकाशन भरतपुर से हुआ था। इसके अनुसार 'पल्लीवाल गच्छ तथा पल्लीवाल जाति इन दोनो की उत्पत्ति मारवाड मे स्थित पाली नामक नगर से हुई। पल्लीवाल गच्छ के प्राचार्यों ने पाली की जनता को प्रतिबोधित किया, जिससे वहाँ की जनता ने जैन धर्म स्वीकार कर लिया। कालान्तर मे ये जैन पल्लीवाल जाति के रूप में परिणित हो गये । पल्लीवाल ब्राह्मणो की उत्पत्ति भी इसी पाली नगर से हुई थी। पालीवाल ब्राह्मणो तथा पल्लीवाल वैश्यो मे पुरोहित तथा यजमान का रिश्ता था। जिस कारण से पालीवाल ब्राह्मणो को पाली का त्याग करना पड़ा, उसी कारण से पल्लीवाल वैश्यो को भी पाली छोडना पडा। कालान्तर मे पल्लीवाल वैश्य पश्चिमी राजस्थान मे प्रा
बसे।'
उपरोक्त कथन से निम्न निष्कर्ष निकलते है-1 पल्लीवाल गच्छ की उत्पत्ति पल्लीवाल जाति से पूर्व हुई और इन दोनो मे प्रतिबोधक और प्रतिबोधित का सम्बन्ध या। अत इन दोनो मे विशेष सम्बन्ध था। 2 पल्लीवाल जाति की उत्पति पाली मे हुई। (3) पालीवाल ब्राह्मणो तथा पल्लीवाल वैश्यो में पुरोहित तथा यजमान का रिश्ता था। 4 पालीवालो तथा पल्लीवालो ने एक साथ पाली नगर का त्याग किया था।