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जानिया एक ऐतिहासिक दृष्टि मल्ल, प्राय गण के अग्रवाल मादि। ये गणतन्त्र एक तरह के पचायती राज्य थे और अपना शासन पाप ही चलाते थे । कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में बताया है कि वैश्य कृषि, पशुपालन और वाणिज्य के अलावा शस्त्र भी धारण करते थे। जब इनकी स्वाधीनता छिन गई और एकतन्त्र राज्यो मे इनको समाप्त कर दिया गया तब ये शस्त्र छोडकर केवल वैश्य कर्म ही करने लगे। उनमे से कितने ही पुराने नामों की जातियो मे ही अपना अस्तित्व बनाये हुए हैं। सम्भव है कि अरोडा, मल्ल. खत्री आदि जातियो की तरह अन्य वैश्य जातियो का सम्बन्ध भी किसी न किसी गणतन्त्र से रहा हो। यह भी सम्भव है कि बार-बार स्थान परिवर्तन के कारण नये स्थानो पर से नये नाम प्रचलित हो गये हो और पुगने गणतन्त्र वाले नाम भूल गये हो।
जैन जातियो की उत्पनि के बारे में कुछ लोगो की धारणा है कि अमुक जनाचार्य ने अमुक नगर के तमाम लोगो को जैन धर्म की दाक्षा दी और तब उम नगर के नाम से उम जाति का नामकर हो गया । उक्त सभी प्राचार्य पहली शताब्दी के बताये जाते हे । प्रेमी जी इन बातो पर अविश्वास प्रकट करते हुये लिखते है कि यह ठीक है कि कभी जत्थे के जत्थे जनी बने होगे। परन्तु यह समझ मे नही आता कि उसमे सभी जातियो के ऊँचनोच लोग हाग, वे सब एक ग्राम के नाम की किसी एक जाति मे कैसे परिणित हो गये होगे, क्योकि ऐमी सभी जातियो मे जो स्थानो के कारण बनी है, जैन-प्रजन दोनो ही धर्मों के लोग अब झी मिलते है । जैन अजन बनते रहे है और अजैन जैन ।' [१.२] जातियों की उत्पत्ति का समय
कुछ विद्वानो का कहना है कि विभिन्न जातियो की उत्पत्ति राजा चन्द्रगुप्त मौर्य के समय मे हुई। उनकी मान्यता है कि राजा चन्द्रगुप्त के राज्य काल मे बारह वर्ष का भीषण दुर्भिक्ष पड़ा था।