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पल्लीवाल जैन जाति का इतिहास श्री नाथूराम जी प्रेमी के अनुसार कुछ जातिया तो भौगोलिक कारणो से, (देश, प्रान्त व नगरो के कारण) बनी है। जैसे-ब्राह्मणो को प्रौदीच्य, कान्यकुब्ज, सारस्वत, गौड प्रादि जातिया । उदीचि अर्थात् उत्तर दिशा के औदीच्य, कान्यकुब्ज देश के कान्यकुब्ज या कनवजिया, सरस्वतो तट के सारस्वत प्रोर गौड देश (बगाल) के गौड । इसी प्रकार श्रीमाल जिनका मल निवास था, वे श्रीमाली कहलाये, जो ब्राह्मण भो है, वैश्य भी है और सुनार भी है। इसी प्रकार खण्डेला के रहने वाले खण्डेलवाल प्रोसिया के प्रोसवाल, मेवाड के मेवाडा, लाट (गुजरात) के लाड आदि । जातियो के सम्बन्ध मे एक यह बात ध्यान रखने की है कि जब किसी राजनैतिक, प्राकृतिक अथवा धार्मिक कारणो से कोई समूह अपने स्थान या प्रान्त का परिवर्तन करके दूसरे स्थान पर जा बसता था तब ही ये नाम उन्हे प्राप्त होते थे और नवीन स्थान पर स्थिर-स्थावर हो जाने पर धीरे-धीरे उनकी उमी नाम से एक जाति बन जाती थी। उदीचि अर्थात उत्तर के ब्राह्मणो का दल जब गुजरात में आकर बसा तब यह स्वाभाविक ही था कि उस दल के लोग अपने जैसे अपने ही दल के लोगो के माय सामाजिक सम्बन्ध रखे और अपने दल को प्रौदोच्य कहाने लगे।
कुछ जातिया सामाजिक कारणों मे बन गई है, जैसे - दस्मा बीसा, पाँचा आदि भेद और परिवारो की चौपम्वे, दोमवे आदि शाखाएँ। कुछ जातिया विचार-भेद से या धर्म के कारण बन गई । पेशे के कारण भी कई जातिया बनी, जैसे-सुनार, लहार, धीवर, बढई, कुम्हार, चमार आदि। इन पेशे वाली जातियो में भी प्रान्त, स्थान, भाषा प्रादि के कारण संकडो उपभेद हो गये।
सुप्रसिद्ध इतिहासकार स्व श्री काशी प्रसाद जायसवाल ने अपने 'हिन्दू-राजतन्त्र' ग्रन्थ मे बतलाया है कि कई जातिया प्राचीन काल के गणतन्त्रो या पचायती राज्यो के अवशेष हैं. जैसे -पजाब के मरोडा (अरट्ट) और खत्री (क्सप्रोई), गोरखपुर-पाजमगढ के