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प्रथम-अध्याय
जातियां . एक ऐतिहासिक दृष्टि
[१.१] जातियो का उद्गम ____चतुर्थ काल से पहले भोगभूमि मे मनुष्य जाति एक ही थी। इसके बाद भगवान ऋषभदेव ने वर्ण-व्यवस्था की स्थापना की। 'प्रादि-पुराण' मे ऐसा वर्णन आता है कि भोगभूमि की रचना के ममाप्त होने पर ऋषभदेव ने जन्म लिया जो प्रथम सम्राट एव तोर्थकर हुए । उन्होने कर्म-भूमि की रचना करके छह आजीविका के माधन बताये, वे है-असि, मसि, कृषि, शिल्प, वाणिज्य और विद्या । समाज व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए उन्होने तीन वर्णो-क्षत्रिय, वैश्य तथा शद्र की स्थापना की। ऐसा वर्गीकरण मनुष्यो की योग्यता, व्यवहार, जीविका एव कार्यो के आधार पर किया गया। दण्ड व्यवस्था हेतु राज्यो का स्थापना की गई । ऋषभदेव ने चार वशो-हरिवश, चन्द्रवश, सूर्यवश नया उग्रवश की स्थापना की तथा उनको पृथक-पृथक राज्य दिये । तीन वर्णो वाली समाज व्यवस्था कुछ समय तक तो चलती रही, लेकिन बाद मे उनके जेष्ठ पुत्र चक्रवर्ती भग्त को एक ब्राह्मण वर्ण स्थापित करने की और आवश्यकता हुई। इस प्रकार मनुष्य जाति अपने-अपने कार्यो के भेद से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा गद्र इन चार वर्णो मे बॅट गई । 'महाभारत' के शान्ति पर्व मे भी यही बात कही गई है । परन्तु आज भारत मे सब मिलाकर 2800 के लगभग जातिया है । प्रश्न उठता है कि मूल के चार वर्णों मे से हजारो जातिया कैसे बन गई ?