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________________ पल्लीवाल जैन जाति का इतिहास पूरे उत्तर भारत में त्राहि-त्राहि मच गई। लोग विभिन्न समूहो मे इधर-उधर भटकने लगे । कही वर्ण-शकरता न हो जाये, इस भय से लोग अपने-अपने समूहो में ही शादी-विवाह करने लगे। धीरेधीरे ये समूह ही विभिन्न जातियो मे परिणित हो गये 12 अन्य कुछ विद्वानो का कहना है कि जातियो का उल्लेख नौवा - दवी शताब्दी से पूर्व का नही मिलता है । अत विभिन्न जानियो को उत्पत्ति का समय नौवी - दसवी शताब्दी होना चाहिए । दसवी शताब्दी के श्री भगवज्जिन सेनाचार्य ने भी अपने 'प्रादिपुराण' में वर्ण व्यवस्था की खूब चर्चा की है, लेकिन जातियो का कोई उल्लेख नही किया है । इसका कारण यह नही कि उनके समय में जातिया नही थी, बल्कि यह है कि उन्होने चौथे काल की समाज व्यवस्था का ही वर्णन किया है, दसवी शताब्दी की समाज व्यवस्था का नही । और चौथे काल में जातिया थी नही । जैन कथा - साहित्य मे भो सामान्यत चौथे काल की घटनाओ काही वर्णन है । लेकिन यहाँ दो बातो पर ध्यान देने की प्रावश्यकता है । एक तो यह कि नौवी दसवी शताब्दी से पूर्व ग्रन्थ प्रशस्तियो आदि में जातियो के उल्लेख करने का प्रचलन ही नही या । मूर्तियो पर तो लेख तक लिखने का प्रचलन नही था । दूसरा यह कि नौवी - दसवी शताब्दी मे ऐसा कोई कारण नजर नहीं आता जिससे यह कहा जा सके कि विभिन्न वर्ण विभिन्न जातियों मे परिणित हो गये, क्योकि जब वर्ण व्यवस्था प्रविछिन्न रूप से चल रही थी तब जातियो के आधार पर नई समाज-व्यवस्था स्थापित होने का कुछ ठोस कारण तो होना ही चाहिये । अत जातिया की उत्पत्ति का समय राजा चन्द्रगुप्त के समय से मानना ही उचित है। कुछ जातिया मात्र छह-सात सौ वर्ष पुरानी भी है । लेकिन ये जातिया किसी बडी जाति के ( विभिन्न कारणो से ) दो या अधिक
SR No.010432
Book TitlePallival Jain Jati ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnilkumar Jain
PublisherPallival Itihas Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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