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विशिष्ठ व्यक्तियो का सक्षिप्त परिचय
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इसकी रचना सवत् 1880 मे की थी, जैसा कि हमने प्रारम्भ मे हो कहा है । सवत् 1883 मे इस नेमिचन्द्रिका की कई प्रतियां की गई थी। इसकी एक प्रति दि० जैन मन्दिर (बडा तेरापथियो का), जयपुर मे उपलब्ध है (वेष्ठन-916), उसका लिपिकाल संवत् 1883 व लिपिकार -सुशाल चन्द पल्लोबाल है।29 इसकी पत्र सख्या 19 तथा कुल छन्द सख्या 86 है । नेमिचन्द्रिका मे लिखा है
'एक सहस्त्र अरु पाठ सतक, वरष असिति और ।
यही सवत् मो करी पूरण इह मुरण गौर ।।56।।' 'नेमिचन्द्रिका' एक खण्ड काव्य है । इसकी भाषा व्रज भाषा है जिस पर खडी बोली तथा कन्नौजी भाषा का भी प्रभाव है। इस खण्ड काव्य को कवि ने दोहा, चौपाई, सोरठा आदि छन्दो मे निबद्ध किया है। शैली सरल तथा मार्मिक है।।
जैसा कि ऊपर कहा गया है कि कवि मनरगलाल की प्रसिद्धि प० दौलतराम जैदी नहीं है । फिर भी इनका 'चौबीसी पूजा पाठ का तो दिगम्बर सम्प्रदाय मे बहुत प्रचार रहा है । 'नेमिचन्द्रिका' आदि अन्य रचनाएँ अप्रकाशित ही है। पल्लीवाल समाज का तो यह कर्तव्य हो जाता है कि अपनी जाति का गौरव बढाने वाले उस कवि को सब रचनायो का संग्रह तथा प्रकाशन करे। उन रचनाओ का आलोचनात्मक अध्ययन किसी विद्वान से लिखवाकर पल्लीवाल समाज मे खूब प्रचार किया जाना चाहिये, जिससे जातीय गौरव की भावना अधिकाधिक विकसित हो सके। इस तरह के पल्लीवाल समाज के अन्य विद्वानो या कवियो की रचनाओं को भी प्रकाश मे लाना चाहिए। {5-7) श्री बुधसेन पल्लीवाल
आपके बारे में विशेष जानकारी तो नही मिली है, लेकिन आपका नाम एक स्थान पर प्राता है। मापने प्राचार्य सकलकीर्ति कृत 'सद्भाषिता' की टीका सवत् 1946 मे की। इससे अनुमान