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पल्लीवाल जैन जाति का इतिहास कवि ने पूरा प्रयास किया है । न, म, त, र, ल और व वर्गों की प्रावृति द्वारा अनेक छन्दो मे मिठास विद्यमान है । कर्णकटु, कर्कश और अर्थहीन शब्दो का प्रयोग बिल्कुल नही किया है । छन्दो की लय और ताल का पूरा ध्यान रखा है ।
बाबू कामता प्रसाद जैन के 'हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास' के पृष्ठ 211 मे लिखा है -“मनरगलाल जी कन्नौज के रहने वाले पल्लीवाल दिगम्बर जैन श्रावक थे। उनके पिता का नाम कन्नौजीलाल जी और माता का नाम देवकी था। कन्नौज में गोपालदास जी एक धर्मात्मा सज्जन थे। उनके कहने से कवि ने 'चौबीस तीर्थंकर का पाठ' स० 1857 मे रचा था। इनकी कविता अच्छी और मनोहर है। इसके अतिरिक्त 'नमिचन्द्रिका', 'मानव्यसन', और 'सप्तर्षि पूजा' नामक ग्रन्थ भी इन्ही के रचे हुए है। 'शिखर सम्मेदाचल महात्म्य (शिखिर विलास) नामक इनकी एक रचना हमारे संग्रह में है, जिसे इन्होने 1879 मे रचा था । वृन्दावन चौबीसी के साथ ही मनरग चौबीसी, पाठ का खूब प्रचार है । दोनो ही कई बार छप चुके है। भाव सौष्ठव जो मनरग के पाठ में है वह शब्दालकार की छटा मे वृन्द के पाठ मे छिप गया है।"
नेमिचन्द्रिका का नाम की एक और रचना भी बद्रीप्रसाद जैन ने काशी से सन् 1923 मे प्रकाशित की थी। जो सवत् 1761 के भादवा सुदी 2 सोमवार को रची गई है। पर उसमे रचयिता का नाम नही है।
'नेमिचन्द्रिका' के रचनाकाल को लेकर विद्वानो मे बहुत मतभेद है ।30 कुछ विद्वान इसका रचनाकाल सवत् 1883 मानते हैं। हिन्दी के मध्यकालीन खण्ड काव्य' मे डा० सियाराम तिवारी ने इसका रचनाकाल सन् 1823 ई तथा काशी नागरी प्रचारिणी सभा ने 'खोज विवरण' ('सभा' सन् 1926-28, प्रथम परिशिष्ट, सख्या 291) मे सवत् 1830 माना है। वस्तुत कवि मनरग ने