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पल्लीवाल जैन जाति का इतिहास
नामक ग्रन्थ पूरा किया। यह ग्रन्थ आपने अपने सुमित्र श्री गोपाल दास जी के अनुरोध पर बनाया। इन्ही गोपालदास जी के लिये प० मनरगलाल जी ने 'हितोपदेश षट पचासि' की रचना स 1881 मे की । नेमिचन्द्रिका' तो बहुत प्रसिद्ध है तथा इसके बारे मे कई विद्वानो ने लिखा है । लेकिन 'हितापदेश षट पचामि' का कही उल्लेख नही आता है । इसकी एक प्रति जनरल गज, कानपुर के दिगम्बर जैन मन्दिर मे उपलब्ध है जिसे अगहन शुक्ला 9 कु ज वासरे स. 1888 मे लाला हिलसुखराय के पुत्र रामसहाय ने लिखा। इस रचना के प्रारम्भ मे कवि ने अपना परिचय इम प्रकार दिया है
"कन्नौज बास श्रावक कुल एव बन्स जानिये, कनोजीलाल नात मात देवकी वखानिये । तयो सुपुत्र मन्नरग ने करी सु छप्पनी, पढो गुनो सुनो सवैय मोह की उथप्पनी ।। यह षट पचासत हित उपदेश, कीनी श्रावण महिना सूवेश । अलि पक्ष सप्तमी तियि गनाय, रविवार श्रेष्ठ जानो बनाय ।। अठ शत इक्यासी गनेउ सो सम्वत भ्राता जान लेउ । प्रेरक याके सुगुपानदास,
तिन हेत करी यह सुनिवास ॥ इस ग्रन्थ मे छत्तीस छन्द है। इसका नाम 'हितोपदेश षट पचासि' का सम्पूर्णम् । लिखितम लाला हिलसुख राय तश्य लाला रामसहाय अगहन शुक्ला 9 कुज वासरे स० 1888 ।।" __ इस प्रकार यह स्पष्ट है कि प० मनरग लाल बहुत ही विद्वान थे। उनके मित्र गोपाल दास भो विद्वान थे तथा समय-समय