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विशिष्ठ व्यक्तियों का सक्षिप्त परिचय
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पर कविवर मनरगलाल जी को धार्मिक रचना लिखने के लिये प्रेरित करते रहते थे । आपकी अन्य रचनामो में 'शिखिर-विलास,' 'सप्त व्यपन चरित्र' 'सप्तर्षि पूजा' तथा 'चौबीसी पूजा पाठ' मुख्य है । 'चौवीसी पूजा पाठ' की रचना सवत् 1857 में की थी। इन सबके अतिरिक्त प्रापने बहुत से पदो की रचना भी की, जिनमें ससार की असारता को बहुत सरल ढग से समझाते हुये ससार से वैराग्य लेने के लिये प्रेरित किया गया है। उनका बहु-प्रचलित एक पद निम्न प्रकार है
"नर भव पायो नही कुशलात । कोई रोगी, कोई शोकी, काहू के घर परि सम मात ।। काऊ के घर घरनी नाही, बिन घरनी घबरात ॥ घरनी भई तो पुत्र नाहि हुओ, समझ सोच पछतात ।। पुत्र भयो तो भयो दुर्व्यसनी, दुख देवै दिन रात ।। कानी कोडी धन नहि घर मे, बडी विपत की बात ॥ अथवा धन हुअो काऊ विधि, तो ततछिन हुमो घात ।। धरी रहेगी सम्पति 'मनरग', क्या जाने को खात ॥"
श्री अगर चन्द जी नाहटा ने अपने लेख 'पल्लीवाल कवि मनरगलाल की नेमिचन्द्रिका 28 मे कवि मनरग लाल जी का परिचय निम्न प्रकार दिया है
दिगम्बर सम्प्रदाय मे पल्लीवाल जाति के कुछ कवि हुए हैं जिनमे कविवर दौलतराम जी तो काफी प्रसिद्ध है। दूसरे कवि मनरगलाल जी वैसे प्रसिद्ध नहीं हो सके । पर उनके द्वारा रचित 'नेमिचन्द्रिका' एक अच्छा काव्य है जो दिगम्बर शास्त्र भण्डारी में प्राप्त है। उसे प्रकाश में लाना बहुत ही आवश्यक है । पल्लीवाल समाज को उसकी जानकारी मिलनी ही चाहिए, इसलिए इस लेख मे उसका सक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है। इस विषय में प० माधवराम शास्त्री 'न्याय तीर्थ' ने अब से करीब 30 वर्ष पहले