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विशिष्ठ व्यक्तियो का सक्षिप्त परिचय
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कविवर ने 'छहढाला' के अतिरिक्त बहुत से आध्यात्मिक पदो की भी रचना की। प० पन्नालाल जी बाकलीवाल ने सर्व प्रथम इनकी रचनामो का संग्रह 'दौलत विलास प्रथम भाग' के नाम से ईस्वी सन् 1904 में प्रकाशित किया था। उसके पश्चात् कलकत्ता से 'दौलत पद सग्रह प्रकाशित हुआ। लेकिन इन प्रकाशनों में दौलतराम जी की सभी रचनाये नहीं आ सकी। सन् 1955 मे अलीगज (एटा) से 'दौलत विलास' नाम से सग्रह प्रकाशित हुआ। इसमे यथासम्भव दौलतराम जी की समस्त रचनायो को सग्रहीत किया गया है।
प० दौलतराम जो की सभी रचनामो का बहुत प्रचार रहा है। दिगम्बर जैन समाज मे तो शायद ही कोई ऐसा घर होगा जहाँ छहढाला न हो। 'छहढाला' वस्तुत एक छोटी कृति अवश्य है, लेकिन इसमे गागर मे सागर भरा हुआ है । छहढाला मे छह अध्याय हैं जिनमे क्रमश ससार की दशा का वर्णन, ससार भ्रमण का कारण, ससार से मुक्ति का उपाय बारह भावनामो का वर्णन तथा साधु चर्या का वर्णन किया गया है । हिन्दी भाषा मे 'छहढाला' से सुन्दर तथा सरल और कोई रचना नही है। प० दौलतराम जी के सभी पद भी आध्यात्मिकता से भरे हुये है। जैन पदकारो मे कविवर दौलतराम जी का प्रमुख स्थान है । उनकी सिद्धहस्त परिमार्जित लेखनी द्वारा लिखे गये पद हिन्दी साहित्य की अक्षय-निधि है। (5-6) कविवर मनरगलाल जी
आप प० दौलतगम जी के समकालीन कवि थे। आपके पिता का नाम श्री कनोजीलाल तथा माता का नाम देवकी था।
आप कन्नौज के रहने वाले थे। आप के जन्म सवत् के बारे में तो नही मालूम है लेकिन इतना अवश्य है कि आपने जेठ सुदी 11 गुरू-सम्वत् 1880 नक्षत्र स्वाति सूर्य के उत्तरायण में 'मिचन्द्रिका'