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पाहुड-दोहा
जह बार तो वह जि पर अप्यहं म प धरे । विसयहं कारापे जीवss परयहं दुक्ख सइ ॥ ११८
जी में जाहि अप्पणा त्रितया होहिं न । फल कि पाकहि जेन विम दुक्ख करेहिं तुज्ह ॥ ११९ ॥ विया नेवहि जीव हुं हं सांहिक एप । देण पिराडि पजलड़ हुबहु जेन विएप ॥
१२० ॥
तर संधाणु किट सो श्राशुकु पिरुन्तु । मित्रता निवड सो अच्छछ मिचिनु ॥ १२१ ॥
हलि सहि कार्ड कर सो दप्पण | जहिं पडिवियुग दीस अप्पनु ॥ वाम ay परिहासः । धरि अच्छंतु ग घरवइ दीसह ॥ १२२ ॥
जतु जीवहं म उ पंचदियहं समाए । मो जापि मोकल र पहु पिचाशु || १२३ ॥
किं किल यह अक्सर जे कालिक जति । मग
२. २.के. जे. ३. पडिविि
५६. न. ८ वचट,
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कति ||१२||
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