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पाहुड-दोहा
है कि जो व्यक्ति अंध विश्वासों और सारहीन क्रियाओं को धर्म समझते हैं वेन भौतिक सुखों का ही लाभ उठाते और न आत्मा का ही कुछ कल्याण करते । दोहा १०५ में कवि ने नरक और स्वर्ग को जाने के दो पथों का उल्लेख किया है। आगे दोहा . २१३ में इंद्रियमुख और मोक्ष के दो मागों का उल्लेख है।
१९०. इस दोहे में कवि ने मुक्ति के असाधारण स्वरूप का वर्णन किया है । साधारण नियम यह है कि जीवधारियों को बांध लेने से उनकी गति रुक जाती है और बन्धन से छूटने पर वे चारों ओर भ्रमण करते हैं। किन्तु आरमा का स्वरूप इससे विपरीत है। कर्म के बन्धन में बंधा हुआ आत्मा संसार की अनेक योनियों में भ्रमण करता है, किन्तु मुक्त होने पर सब अवागमन से रहित हो जाता है। इस प्रकार यह आत्मालयी करहा विचित्र ही है।
१९१. इस दोहे का अर्थ कुछ अस्पष्ट है। अनुवाद में रहन्तु का अर्थ रक्षत् लिया गया है। रिह' धातु का अर्थ छोड़ना, लागना होता है। 'अबराडइहिं ' का अर्थ 'अपरकानि ' [अरराणि लिया गया है वह भी सन्देह से परे नही है। खंधा ' धारित ( रकंधावारितः ) का अर्थ 'इन्द्रियों की फौज सहित' दिया गया है | अनुवाद के अतिरिक्त और कोई अर्थ मुझे यहाँ गुक्तिसंगत नही चता।