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टिप्पणी
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जिसमें सकळीकरण क्रिया की जाती है तथा कमल के अष्ट पत्रों पर आठ प्रकार के जल-देवताओं का पूजन किया जाता है। इस पूजन में गंगादि देवताओं का आह्वान इस प्रकार किया जाता है
गंगादिदिव्य सरिदंयुविभूतिभोक्त्री गंगादिदेवतवधूर्विधिपूर्वमेताः ।
अयुगंधतंडुललतांतच प्रदीप
धूपप्रसून कुसुमाञ्जलिभिर्यज्ञेऽस्मिन् ॥
प्रतिष्ठासार, २२४३.
ग्रंथकार का कहना है कि आराधक न तो सकलीकरण के मर्म को समझता, न जिसे पूजता है उस कमलपत्र और जिससे पूजता है उस पानी के भेद को समझता, न आत्मा और पर के भेद को समझता । केवल ज्ञानहीन रूप से क्षुद्र गंगादि देवताओं की पूजा करता है ।
१८८. यहां दो पंथों से कवि का क्या तात्पर्य है यह कहना कठिन है । क्या भक्ति और ज्ञान, या ज्ञान और कर्म से मतलब है ? भगवद्गीता में दो प्रकार की निष्ठा बतलाई गई हैं, यथा
लोकेऽस्मिन्द्विविधा निष्ठा पुरा प्रोक्ता मयानघ ।
ज्ञानयोगेन सांख्यानां कर्मयोगेन योगिनाम् ॥ ३, ३.
सम्भव है यहां कचि लौकिक और पारलौकिक या भौतिक और आधिभौतिक सुख की बात सोच रहे हैं। उनका कहना