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( ३१ ) देप घरि भामिणी रूप सुर कामिणी,
रमणि गुण रयण सइच परीणा। सील सोहामणि सुगुण अनुरागिणी,
देवलदेवि जिण धम्म लीणा ॥ ८॥ तीहवर उवर सरि अवरिय हंस वरि,
सहिसमणि सूडओ सद्ध परक्खो । पुत्त गिरि रोहणो रयणु जिमि मेरु गुरि कप्परुखो || चवदसइ इगुणपचास ए वच्छरे १४४६
विक्कमे चेत सुदि सकवारे । अट्ठमे पुण्णवस चउय पाए ससि
निशि कुमर जाइओ देपनारे ॥१०॥ करिय वद्धामणउ सुयण सोहामणउ
दाण दिज्जति बाजति तूरि । दिवस दसि नवनव करिय पिउ उच्छवा,
नाम किय देलह आणद पूरे ॥११।। नेह तरु कदलो-वीय-जिमचंदलो,
बाधए दिनदिने अहि कुमारो । अगणे खेलए अमिय रस रेलए,
सुयण गण नयण रूवेण सारो ॥१२॥
॥ वस्तु ॥ -- पुर महेवउ-पुर महेवउ अघइ मरु देशि ।
उवएस वसिहि तिलउ संखवाल कुल कमल दिणयर । दुई बंधव सघर तिहि, आपमल्ल देपा सहोदर ॥ देवलदे देपा घरणि, तिणि जायउ सुकुमार । देल्हड नाम पतीठिउ, वाधइ रूपि अपार ॥१३॥