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( ३२ ) अह महेवइ पुरे आविउ सुन्दरो वायणारिय सिरि खेमकित्ति । देल्हउ बदए चित्त अभिनन्दए देइ उवएस तसु सुगुरू झत्ति ॥१४॥ कुमरु गुरू वाणिय अमिय समाणोय, निसुणिय जाणिय भव सरूव । चितए सजम लेसु अइ उन्जमं, करिय लघेसु भव दु.ख कूव ॥१५॥ कुमरु हिव मग्गए निय जणणि अग्गए सयम गहण आएसु मात । जप पत्त सुणिय इक्कवार भणिय वच्छ म कहेसु वलि एह वात॥१६।। लेसुतुह दुक्खडा देसु घण सूखड़ा, गुदवड वरसउला विदाम । खारिकुक्खुरहडि द्राख खज्जूरड़ी दाडिम खोड जे अवर नाम ॥१७॥ कणय मणि भूषणा वच्छ गह दूपण, धरि सिरे कड़िकरे बहुकन्ने । पिहरतु कापडा वारुय वापडा, जे न पिक्ख ति सुमणेवि अन्ने ॥१८॥ रूपिहि रूडिय चित्त नहुकूडिय, ललिय लावण्ण गुणवतु नारी । लाडण परणिय विसय सम्माणिय, सजम लेय पछइ विचारी ।।१६।। कहतह सोहलउ धरत रूह दोहिलउ, पच महन्वय भारु जेम । आविय मइ मतिहि मयण मय दतिहि, लोह चिण माउचावे जुकेम।॥२०॥ माय गुरू अधिय तज अविगाधिय चोवर रुचइ मह मण मझारि । विसय सुह चचल अनइ हलाहला केम कहि परण्यउ तेण नारि ॥२२॥ अइव साहस्स धरि विसम मवि ते करड,कज्जुमह सजमा ए सुदेहि ।' जाणि अणणो सुय चरण कय निच्छय, भणय वच्छ वछिय करेसु ॥२३॥
।। वस्तु ॥ अह महेवइ अह महेवइ अन्त दिवसामि वाणारि आवियउ खेमकिति । तसु तणइ उवए सइ उम्हायड देल्हवर दिवरत कुमरि परणिवा रेसिहि । माय मनावइ मन रलिय, मुज्झ मनोरथ पूरि। पुत चित्त जाणी भणड, लयबत पातग चूरि ॥२४॥