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( कल्याण चन्द्र कृत )
श्री कीतिरत्नसूरि वीवाहलउ
भत्ति भर भरियउ हरिस सिरि वरियउ
पण मिय सतिकर सतिनाह ।
सारदा सामिणी हसला गामिणी
झाणिहि निय हिय करि सनाह || १॥
नाण लोयण तणउ अम्ह दातार गुरु,
अनम गुणवत सिरि मउड मणि ।
ते सिरि कितिरयण छरीसरे हिव
कहिसु हउ चरिम घरि मतिमणि ||२|| देश मरू मंडल सहिज अति मुज्जल,
महिय हेल भासति भालं ।
तिलकु जिम सोहए वहु मोह,
तिहा महेवापुरे सिरि विसाल ||३|| लोग धनवत गुणवत सुविलासिनी,
कामिणी गढ़ मढा वास सत्य ।
दोसइ जं पुर जण पुरंदर पुर
भोगय भरह सिरि दंसणत्थ ||४|| सतिजिण वीरजिण नवण, धयवड मिसिण, तज्जुयतो परम मोहसंतु ।
साहुजिण थनिय गुण अणदिण गाजए,
राजए राउ जिणधम्म भत्तु ॥५॥
तत्थ उवएस वशे मही पयडओ,
धम्म धुरु धोर कुल सखवालं ।
कणय धण रयण सतानि सुसमिद्धओ
सोहर सायर जिम विशाल ॥६॥ अत्यि विवहारिणो बहुय गुण धारिणो, आप मनल्लो राम लखमण जहा नह निव्भर तहा,
वधवा दोइ धनवत धाम ||७||
तहय
देप नाम |