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[४] अन्यार्थ स्तुति
वरसोला भला गूदबडा खजूर साकर । शाति दद्या सदाचारा नोल पादहिखारिका ||१|| अदर सा गुणाधार, लापसोभा नमीश्वर । अघेवर जलेबी जव रागा स्फुरेति कीर्तीय ॥२॥ सुकाचरी सुकारेला, वडी पापड काकडो ।
कौ सागरी इसी वाणी जैनी भूया सदा फल ||३|| कपूर लवग रस, सदा पान फरो हरे ।
तंबोल खयरसारव सोपारी सुथित क्रियात ||४||
इति श्री अन्यार्थी स्तुति । कीर्ति रत्ना चार्यायै ।
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