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परिशिष्ट नं० २
अ० कीतिरत्नसूरि सम्बन्धी ऐ० अज्ञात रचना
(३) चतारिट्ठ दस पट अर्थाः
चत्तारि जिणवीस ठाणेसु सिद्ध सग मणु पत्ता । अट्ठदोस मिलिया वीसे, वदामि सम्मे, ए ॥१॥ रिसहाण णाह सासय चत्तारि सासउ वन्दे । अट्ठ दस दोइ वीस गए दंतट्ठिए सु वन्दामि || || चउ गुरु अट्ठ अडयाला दस दो बारस तहा सट्ठी । एव चउमुह जिण चेइए सु वदामि जिण नयर ||३|| अट्ठ दस दोइ वीसे, ठाणे आराहिउणमे सिद्धा । नामाइ जिण चउरो तेसि वदामि भत्तीए ||४|| चत्तारि सासयउ पडिमा वदामि तिव्व । अट्ठ दस दोइ वीसं वट्ट वेयट्टेसु चेसु ॥५॥ अट्ठ दस दोइ वीसे ते चउग्रणिया सवे असी सखा । एव जिण भवणाइ वदेह पच मेरुसु ||६|| सुसहर कय नव अत्था, तदुवरि सिरि कित्तिरयण सूराहि । रईआ इमेत्थ अत्था, खरतर गण जलघि रयणेण || || इतिपट अर्थ श्री कीर्तिरत्नसूरि विरचिता पत्र १ न०६६२४ अभय जैन ग्रंथालय, बीकानेर ।