________________
( २७ )
जो केसव पञ्चहि पडवेहि, पञ्चगड पणमिय जादवेहिं । सिय पञ्चम नाण आराहगाण, सो हरउ दुरिय जिण सेवगांण ॥७॥
॥ वस्तु ॥
पढम नाहि पढम नाणहि भेय अडवीस |
चउदभेय सुयस्स तह अवहि नाण छन्भेय निम्मल । मणपज्जव ताण पुण दुन्नि भेय इग भेय केवल । 'एव पञ्च पयार मिह जेण परूत्रिय नाण । सो नदउ सिरि नेमि जिण मङ्गलमय अभिहाण ॥८॥
॥ भास ॥
पञ्चासव तक्कर हरण, दिणयर जिम दीपति 1 पइदिउ सिरि नेमि जिण, हियय कमल विहसत ॥६॥ तुट्टई पञ्च पयार मह, अन्तराय अन्धियार । पञ्चाणुत्तर भाव सवि, पर्याड़िय हुइ जगसार ||१०| भवपुरि वसता सामि हूय, राग दोस मिलिएहि । रयणदिवस सतावियउ ए पश्चिदिय चाहि ||११|| सिद्धि नयरि दिउ वास हिव, करि पसाउ जिणराउ । पञ्चम गइ कामिणि रमण, वर पञ्चाणण ताय ॥१२॥ ( कलश ) सिवादेवि तदण पाव खडण तरण तारण पच्चलो । हय कम्म रिउ बल सबल केवल, नाण लोयण निम्मलो । सिरि नाणपचमि दिवस थुणिइ, नेमिनाह जिणेसखे ।
उ सिद्धि सपइ देव जपइ, कीर्त्तिराय मणोहसे ॥१३॥
1 इति श्री नेमिनाथ स्तवनम् ।
अभय जैन ग्रन्थालय प्रति स० ६६३५ पत्र - १ १७ वी शताब्दी लिख प० हीरराज लिखत । १६ वी शती के गुटका रत्न मे भी है ।
1