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कोतिराजोपाध्याय कृत (२) श्री ज्ञानपंचमी गभित नेमिनाथ स्तवन
वदामि नेमिनाह, पचम गइ कुमरि विहिय वीवाह । भजिय मयणुच्छाहं, अङ्गीकय सील सन्नाह ।।१।।
भास ।। अस्थिय काया पच कहिय जिण पच पमाया। पच नाण पचेव दाण पणवीस कसाया ।। पच विषय पचेव जाइ, इन्द्री पचेव । सुमति पच आयार पच तह वय पचेव ॥२॥ पच भेद सज्झाय पच चारित्त परूविय। इग्यारिसि पचमि पमुक्ख तव जेण पयासिय ।। पच रूव मिच्छित्त तिमिर निन्नासण दिणयर । नयण सलूणउ देव नेमि सो थुणियइ सुहयर ॥३॥
॥ वस्तु॥ पच वन्नहि पच वन्नहि सुरहि कुसुमेहि । मणि माणिक मुत्तियहि पञ्च पञ्च वत्थूणि उत्तम । भावइ पञ्चहि पुत्थियहि पञ्च वरिस काऊण पञ्चमि ॥
जे आराहइ पञ्च विह नाण ठाण लोयाण । । नेमिजिणेसर भूवण गुरु द्यउ वर केवलनाण ||४|| जिण मूल उमूलिय पञ्च वाण, पञ्चम गइ पामिय जेणि ठाण । सावण सिय पञ्चमि जम्म जासु, हू भावइ वदु चरण तासु ॥५॥ जिण चवदह पुव्व इग्यार अङ्ग, उपदेसइ दसिय मुक्ख मग्ग । परमिट्ठ पञ्च मझय पहाण, त नमह नेमि जिण होइ नाण ॥६॥