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________________ नेमिनाथ-चरित्र दिन निर्गमन करने लगे। एक दिन रात्रिके समय जव वे अपनी पत्नीके साथ सो रहे थे, तब अचानक वहाँ अंगारक आया और उन्हें उठाकर वहाँसे चल पड़ा। इससे तुरन्त वसुदेवकी निद्रा भङ्ग हो गयी। वे अपने मनमें सोचने लगे कि मुझे यह कौन उठाये लिये जा रहा है ? इतनेही में उन्हें हाथमें खड्ग लिये श्यामा दिखायी दी। ॲगारकने उसे देखते ही अपनी तलवारसे उसके दो टुकड़े कर डाले। यह हृदय विदारक दृश्य देखकर वसुदेवं काँप उठे और उनके मुखसे एक चीख निकल पड़ी। किन्तु दूसरे ही क्षण उन्होंने देखा कि दो श्यामाएँ दोनों ओर से अंगारकके साथ युद्ध कर रही हैं । यह देखकर वसुदेवने समझा कि यह सब झूठी माया है। उन्होंने उसी समय अगारककै शिरपर एक ऐसा घुसा जमाया कि वह पीड़ासे तिल-मिला उठा। उसने तुरन्त वसुदेवको छोड़ दिया। वसुदेव चम्पानगरीके बाहर एक सरोवरमें जा गिरे, किन्तु सौभाग्यवश उन्हें कोई चोट न आयी। वे तैरकर उसके वाहर निकल आये। समीपमें ही एक उपवन था। उसमें श्री वासुपूज्य भगवंतका चैत्य था। उसीमें प्रवेश कर
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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