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छठा परिच्छेद मुनिराजने कहा:--"जो जलावर्चके हाथीको जीतेगा, वही तुम्हारा दामाद होगा। यही उसकी पहचान है।"
मुनिराजके इन वचनों पर विश्वास कर मेरे पिता यहाँपर चले आये। उसी समयसे यह नगर वसाकर वे यहाँपर निवास करते हैं। आपकी खोजमें वे प्रतिदिन जलावर्त पर दो विद्याधरोंको भेजा करते थे। जिस दिन आपने उसे पराजित कर उस पर सवारी की, उसीदिन वे आपको पहचान कर यहाँपर ले आये और इसीलिये मेरे पिताने आपके साथ मेरा विवाह कर दिया। मैं जानती हूँ कि अंगारक आपको यहाँ चैनसे न बैठने देगा। साथ ही मुझे यह भी मालूम है कि धरणेन्द्र और विद्याधरोंने मिलकर यह निर्णय किया है कि आर्हत चैत्यके निकट
और साधुके समीप अवस्थित स्त्री सहित इन्हें जो मारेगा, वह विद्या रहित हो जायगा। हे स्वामिन् ! इन्हीं सत्र कारणोंसे मैंने यह वर माँगा है। मेरी धारणा है कि इससे अंगारक अब आपको अकेला न मार सकेगा।"
श्यामाके यह वचन सुनकर वसुदेवको बड़ाही आनन्दं हुआ। अब वे सुखपूर्वक वहीं रहते हुए अपने