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पाँचवाँ परिच्छेद
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विजय, अक्षोभ्य, स्तिमित, सागर, हिमवान, अचल, धरण, पूरण, अभिचन्द्र और वसुदेव आदि नामसे प्रसिद्ध हुए। यह दस भाई संसारमें दशार्ह नामसे भी सम्बोधित किये जाते थे। उनके कुन्ती और माद्री नामक दो छोटी बहनें थीं । कुन्तीका विवाह राजा पाण्डु और माद्रीका विवाह राजा दमघोपके साथ हुआ ।
एक दिन राजा अन्धकवृष्णीने सुप्रतिष्ट नामक अवधि ज्ञानी मुनिसे पूछा :- "हे स्वामिन् ! मेरा दसवाँ पुत्र वसुदेव इतना रूपवान, गुणवान और भाग्यशाली क्यों है ? यही सब बातें उसके दूसरे भाइयों में क्यों
नहीं पायी जातीं ?
सुप्रतिष्ठ मुनिने कहा :- "हे राजन् ! इसका एक कारण है जो मैं तुझे बतलाता हूँ । सुनो, एक समय मगध देशके नन्दी ग्राम में एक दरिद्र ब्राह्मण रहता था । उसकी ख़ीका नाम सोमिला और उसके पुत्रका नाम नन्दिषेण था । नन्दिषेणका भाग्य बहुत ही मन्द था, इसलिये बाल्यावस्था में ही उसके माता- पिताका देहान्त
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हो गया । नन्दिषेण कुरूप था, और उसके राशी-ग्रह.