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चौथा पारद
उधर विमलबोधका जीव देवलोकसे च्युत होकर श्रीपेण राजाके मन्त्रीके यहाँ पुत्र रूपमें उत्पन्न हुआ और उसका नाम मतिप्रभ रक्खा गया । पूर्व सम्बन्धके कारण 'शंखकुमार और उसमें बाल्यावस्थासेही मित्रता हो गयी। यह मैत्री-बन्धन दिन प्रतिदिन दृढ़ होता गया और वाल्यावस्थाकी भांति युवावस्थामें भी वे दोनों एक दूसरेके घनिष्ठ मित्र बने रहे। ___ एक दिन प्रजाके एक दलने श्रीपेण राजाकी सेवामें उपस्थित होकर प्रार्थना की कि :-'राजन् ! आपके राज्यकी सीमा पर विशाल शृंग नामक एक बहुत ही विषम पर्वत है। उसमें शिशिरा नामक एक नदी भी वहती है। उसी पर्वतके कीलेमें समरकेतु नामक एक पल्लीपति रहता है। यह हमलोगों पर बड़ा ही अत्याचार करता है और हमलोगोंको दिन दहाड़े लूट लेता है । हे 'राजन् ! यदि आप उसके अत्याचारसे हमारी रक्षा न करेंगे, तो हमलोग आपका राज्य छोड़ कर कहीं अन्यत्र जा वसंगे।"
प्रजाके यह वचन सुनकर राजाने उसे आश्वासन दे