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नेमिनाथ चरित्र
विदा किया और पल्लीपति पर आक्रमण करनेके लिये उसी समय सैन्यको तैयार होनेकी आज्ञा दी। रणभेरीका आवाज सुनकर नगरमें खलबली मच गयी । शंखकुमार उसका कारण जानकर पिताके पास दौड़ आये और उन्हें प्रणाम कर कहने लगे :- "हे पिताजी ! एक साधारण पल्लीपति पर आप इतना क्रोध क्यों करते हैं ? श्रृंगाल पर सिंहको हाथ डालने की जरूरत नहीं। उसके लिये तो हम लोग काफी हैं। यदि आपकी आज्ञा हो तो मैं शीघ्र ही उसे गिरफ्तार कर आपकी सेवामें हाजिर कर सकता हूँ ।"
पुत्रके यह वचन सुनकर राजाको बड़ा ही आनन्द हुआ। उन्होंने पल्लीपतिको दण्ड देनेके लिये शंखकुमारकी अधिनायकतामें एक बड़ी सेना रवाना की । परन्तु पल्लीपति बड़ा ही धूर्त था । उसने ज्यों ही सुना कि शंखकुमार इस ओर आ रहे हैं, त्यों ही वह अपने किलेको खाली कर एक गुफामें जा छिपा । कुशाग्रबुद्धि शंखकुमार उसकी यह चाल पहले ही समझ गये, इसलिये उन्होंने कुछ सेनाके साथ एक सामन्तको उस किलेमें भेज