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नेमिनाथ-चरित्र वह अक्षरशः सत्य प्रमाणित हुआ, क्योंकि इसी चित्रगति ने मेरा खड्ग छीन लिया था, इसी पर आकाशसे पुष्पघृष्टि हुई है और इसी पर मेरी पुत्रीको अनुराग उत्पन्न हुआ है। निःसन्देह, यही रत्नवतीका भावी पति है। मुझे अब शीघ्र ही इससे रत्नवतीका व्याह कर देना चाहिये, परन्तु यहाँ पर देवस्थानमें विवाह विषयक बातचीत करना ठीक नहीं। नगरमें पहुंचनेके बाद इसकी चर्चा करना उचित होगा।"
यह सोच कर राजा अनंग सिंह सपरिवार अपने नगरको लौट आये। सुमित्रदेव तथा अन्यान्य विद्यारोंका सत्कार कर, चित्रगति भी अपने पिताके साथ अपने नगरको वापस चला गया। __ शीघ्र ही राजा अनंगसिंहने अपने प्रधान मन्त्रीको चित्रगतिके पिता राजा सूरकी सेवामें प्रेषित किया । उसने राज-सभामें उपस्थित हो, उन्हें प्रणाम करके कहाः"हे स्वामिन् ! आपके पुत्र चित्रगति और हमारी राजकुमारी रत्नवती–दोनों रनके समान हैं। इनका विवाह कर देनेसे मणि-काश्चन योगकी कहावत चरितार्थ हो