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दूसरा परिच्छेद Friminimummmmmmmmmm
सकती है। हमारे महाराज इस सम्बन्धके लिये बहुत ही उत्सुक हैं। यदि आप भी अपनी सम्मति प्रदान करेंगे , तो हमलोग अपनेको कृत-कृत्य समझेगे।" . राजा सूरने अनंगसिंहके मन्त्रीकी यह प्रार्थना सहर्ष . स्वीकार ली। कुछ दिनोंके बाद शुभ मुहूर्तमें उन दोनों
का विवाह कर दिया गया। रनवती चित्रगतिको पतिरूपमें पाकर बहुत ही प्रसन्न हुई। वे दोनों गार्हस्थ्य सुख उपभोग करते हुए आनन्दपूर्वक अपने दिन निर्गमन । करने लगे।
उधर धनदेव और धनदत्त के जीव च्युत होकर सरके यहाँ पुत्र रूपमें उत्पन्न हुए थे। चित्रगति अपने इन छोटे 'भाइयोंको बहुत ही प्रेम करता था। उनके नाम मनोगति
और चपलगति रक्खे गये थे। बड़े होनेपर उन्हें भी समुचित शिक्षा दी गयी थी। विवाहके कई वर्ष बाद चित्रगति अपनी पत्नी और लघु बन्धुओंके साथ नन्दी"वरादि महातीर्थोकी यात्रा करने गये। वहाँसे वापस लौटने पर उसके पिता सरने उसे सिंहासन पर बैठा कर स्वयादीक्षा लेली। चित्रगति योग्य पिताका पुत्र था ।