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नेमिनाथ चरित्र
उखाड़ फेंकता है, उसी प्रकार चित्रगतिने कमलकी सेना - को छिन्नभिन्न कर डाला । वह युद्धसे मुख मोड़कर मैदान से भागनेकी तैयारी करने लगा |
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अपने पुत्रकी पराजयका यह समाचार सुनकर राजा अनंगसिंह अपनी सेनाके साथ वहाँ दौड़ आया और चित्रगति से युद्ध करने लगा। दोनोंने अपनी शस्त्रविद्या और भुजबलसे काम लेनमें कोई बात उठा न रक्खी। घण्टों युद्ध होता रहा, परन्तु दोसे कोई भी किसीको पराजित न कर सका । राजा अनंगसिंहने जब देखा, कि इस शत्रुको जीतना बहुत ही कठिन है तब उसने उस खड्गका स्मरण किया जो उसके पूर्वजोंको किसी देवताकी कृपासे प्राप्त हुआ था । स्मरण करतेही वह खड्ग उसके हाथमें आ पहुँचा । वह खड्ग क्या था, मानो मूर्तिमान काल था उससे अग्निकी ज्वालाके समान भयंकर लपटें निकल रही
जो बिजली की तरह चारों ओर लपक लपक कर शत्रु सेनाको झुलसाये देती थीं । उस देवी खड्गके सामने ठहरना तो दूर रहा, उसकी ओर आंख उठाकर देखना भी कठिन था । वह खड्ग हाथमें आतेही.