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दूसरा परिच्छेद यह भी पता न था कि यह कार्य किसने और किस उद्दशसे किया है। एक विद्याधरके मुहसे यह समाचार चित्रगतिने सुना, तो उसने इस विपत्ति कालमें अपन, प्यारे मित्रकी सहायता करना अपना कर्तव्य समझा। उसने तुरन्त अपने विद्याधरों द्वारा सुमित्रको बहला भेजा, कि आपकी इस विपत्तिसे मैं बहुत दुःखी हूँ, परन्तु आप कोई चिन्ता न करें। आपकी बहिनका पता लगा कर उसे जिस प्रकार हो, आपके पास पहुँचा देनका भार में अपने ऊपर लेता हूँ।
चित्रगतिकी इस सान्त्वनासे सुमित्रके व्यथित हृदय को बहुत शान्ति मिली। चित्रगतिकी यह सान्त्वना केवल मौखिक ही न थी। बल्कि उसने दूसरेही दिन उसका पता लगानेके लिये अपने नगरसे सदलबल प्रस्थान कर दिया। मार्गमें उसे अपने गुप्तचरोंद्वारा मालूम हुआ कि उसका हरण कमलने ही किया है। इसलिये उसने अपनी समस्त सेनाके साथ शिवमन्दिर नगर पर धावा बोल दिया। कमलमें इतनी शक्ति कहाँ, कि वह उसके सामने ठहर सके। जिस प्रकार गजेन्द्र कमल-नालको