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सोलहवाँ परिच्छेद
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गया । वह चक्र क्या था मानो कृष्णका मूर्तिमान प्रताप था । कृष्णने छातीमें लगते ही उसे एक हाथसे. पकड़ लिया । उनका यह कार्य देखते ही देवतागण पुकार उठे - "भरतक्षेत्र में नवे वासुदेव उत्पन्न हो गये । नवम वासुदेवकी जय हो !" यह कहकर उन्होंने कृष्ण, पर सुगन्धित जल और पुष्पोंकी वृष्टि भी की।
कृष्णने उस चक्रको हाथमें ही लिये हुए कहा :"हे अभिमानी जरासन्ध ! क्या यह भी मेरी माया है ? यदि तू अपना कल्याण चाहता हो, तो मेरी बात मानकर अब भी वापस चला जा और वहाँ जाकर पूर्ववद राज्य कर । तू वृद्ध है, इस संसार में चन्द दिनोंका मेहमान है, इसलिये मैं तेरा प्राण नहीं लेना चाहता । यदि तू मेरे इन वचनों पर ध्यान न देगा तो यह तेरा ही चक्र तेरे प्राणोंका ग्राहक बन जायगा ।"
मानी जरासन्धने कहा :- "अपने ही चक्रसे मुझे इस तरह डरनेका कोई कारण नहीं । यह तो मेरे लिये कुम्हारके चक्र के समान है। तेरी आज्ञा मानकर मैं रणसे विमुख होना भी पसन्द नहीं कर सकता। यदि