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नेमिनाथ-चरित्र तू. चक्र चलाना चाहता है, तो सहर्ष चला, मैं तुझे मना
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नहीं करता।"
... जरासन्धके यह वचन सुनकर कृष्णने रोषपूर्वक वह चक्र जरासन्ध पर छोड़ दिया। किसीने ठीक ही कहा है कि पराया हथियार भी पुण्यवानके हाथमें पड़ने पर अपना बन जाता है। चक्र लगते ही जरासन्धका शिर अड़से अलग हो गया और वह चौथे नरकका अधिकारी हुआ। कृष्णकी इस विजयसे चारों ओर आनन्द छा गया और . देवताओंने भी उनकी जय मनाकर उनपर पुष्प-वृष्टि की।
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सत्रहवाँ परिच्छेद
कृष्ण वसुदेवका राज्याभिषेक युद्ध समाप्त हो जानेपर नेमिनाथ प्रभुने कृष्णके शत्रु राजाओंको बन्धन-मुक्त कर दिया। फलतः वे हाथ जोड़, प्रभुको प्रणाम कर कहने लगे :- "हे नाथ ! यदुवंशमें तीनों लोकके स्वामी आपका अवतार होनेसे ही