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नेमिनाथ-चरित्र उसी समय आ उपस्थित हुआ। क्रोधान्ध जरासन्धने उसकों भी चारों ओर घुमाकर कृष्ण पर छोड़ दिया।
वेगके कारण वह चक्र हाथसे छूटकर जिस समय आकाशमें पहुंचा, उस समय उसे देखकर. विद्याधर भी काँप उठे। कृष्णकी समस्त सेंना व्याकुल, हो, एक, दूसरेका मुँह ताकने लगी। उस चक्रको रोकनेके लिये कृष्ण, बलराम, पञ्च पाण्डव तथा अन्यान्य योद्धाओंने अपने अपने अस्त्र छोड़े, किन्तु वे सर्व बेकार हो गये। लोगोंने समझा कि अब कृष्णकी खैर नहीं। यह अवश्य ही उनके प्राण ले लेगा। सवः लोग चिन्तित और व्याकुल भावसे यह देखनेके लिये कृष्णकी ओर दौड़ पड़े, कि वह चक्र लंगने पर उनकी क्या अवस्था होती है। ' चक्र वास्तवमें दुर्निवार्य था। उसकी गति कोई भी न.रोक सकता था। साथ ही वह अमोघ भी था। यह भला कब . हो सकता था कि वह कृष्ण तक न पहुँचे. १ वह कृष्ण तक पहुंचा और उनके भी लगा, किन्तु शस्त्रकी तरह नहीं, फूलोंके एक गेंदकी तरह । उसका स्पर्श कृष्णके लिये मानो सुख और शान्तिदायक वन .