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सोलहवा परिच्छेद
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उत्सुक हूँ। मैं आपकी तरह आत्म-प्रशंसा नहीं करता, परन्तु इतना अवश्य . कहता हूँ, कि आपकी पुत्रीकी प्रतिज्ञा अल्प समयमें अवश्य पूरी होगी, किन्तु वह पूरी होगी अग्नि प्रवेश द्वारा, किसी दूसरे कार्यद्वारा नहीं। मेरे इस कथनमें सन्देहके लिये जरा भी स्थान नहीं है।"
कृष्णके इन वचनोंसे ऋद्ध होकर जरासन्धने उनपर कई तीक्ष्ण वाण छोड़े, किन्तु कृष्णने उन सवोंको काट. डाला। इसके बाद वे दोनों क्रोधपूर्वक अष्टापदकी भाँति स्थिर हो युद्ध करने लगे। उस समय उनके धनुर्दण्डके शब्दसे दसों दिशाएँ व्याप्त हो गयीं, युद्धके वेगसे समुद्र क्षुब्ध हो उठे और आकाशमें विद्याधर भी त्रसित हो गये। पर्वतके समान उनके रथोंके इधर उधर दौड़नेके कारण पृथ्वी भी क्षणभरके लिये काँप उठी। वह युद्ध क्या था, मानो प्रलयकाल उपस्थित हो गया था।
थोड़ी ही देर में कृष्णने जरासन्धके समस्त अस्त्रोंको क्षणभरमें काट डाले। यह देख, अभिमानी.जरासन्धने , अपने अमोपास्त्र चक्ररतको याद किया, इसलिये वह