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नेमिनाथ-चरित्र
अब तो उसके राम गये हैं । उन कुबेरने उनके
से उसका बाल भी बाँका न हुआ । और कृष्ण जैसे दो बलवान पुत्र भी हो दोनोंने इतनी उन्नति की है, कि स्वयं लिये द्वारिका नगरी बना दी है। वे दोनों महाशूरवीर हैं । महारथी पञ्च पाण्डयोंने भी संकटमें उनकी शरण स्वीकार की है। कृष्णके प्रद्युम्न और शाम्त्र नामक दो पुत्र भी अपने पिता और पितामहकी ही भाँति बड़े पराक्रमी हैं । भीम और अर्जुन अपने बाहुबलसे यमको भी नीचा दिखा सकते हैं । इन सबको जाने दीजिये, केवल अरिष्टनेमि ही ऐसे हैं जो अपने भुज- दण्डसे क्षणसात्र समस्त पृथ्वीको अपने अधिकारमें कर सकते हैं । साधारण योद्धाओं की तो गणना भी नहीं की जा सकती।
हे मगधेश्वर ! अब आप अपनी शक्ति पर विचार कीजिये । आपकी सेनामें शिशुपाल और रुक्मी अग्रगण्य हैं, परन्तु उनका वल तो रुक्मिणी-हरण के समय बलरामके युद्धमें देखा ही जा चुका है । कुरुवंशी दुर्योधन और गन्धारदेशके शकुनि राजा छल और प्रपञ्चमें जितने चढ़े बढ़े हैं, उतने बलमें नहीं। सच पूछिये तो वीरपुरुषों में