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नेमिनाथ चरित्र सामने जाकर उनको वहीं रोक सकते हैं। इससे जरासन्धका बल टूट जायगा और उसे जीतना सहज हो जायगा।
विद्याधरोंके यह वचन सुनकर समुद्रविजयने कृष्णसे सलाह कर, उनके कथनानुसार सब व्यवस्था कर दी। जन्म मात्रके समय श्री अरिष्टनेमिझे हाथमें देवताओंने शस्त्रधारिणी औषधि वाँध दी थी। वही औषधि श्री अरिष्टनेमि भगवानने, विद्याधरोंके साथ प्रस्थान करते समय वसुदेवके हाथमें बाँध दी, जिससे शत्रुके शस्त्रास्त्रोंसे उनकी रक्षा हो सके।
उधर जरासन्धके शिविरमें भी युद्ध-मन्त्रणा हो रही 'थी । व्यूह रचनाके लिये अनेक राजा और सामन्त भिन्न भिन्न प्रकारको सूचनाएँ दे रहे थे। परन्तु हंस नामक “मन्त्रीश्वर आरम्भसे ही इस युद्धका विरोधी था। उसने अन्यान्य मन्त्रियोंके साथ आकर जरासन्धसे कहा:"हे स्वामिन् ! आप अपने जमाई कंसका बदला लेना चाहते हैं, परन्तु आप यह नहीं सोचते, कि उसने जो -अविचारपूर्ण कार्य किया था, उसीका उसको फल