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सोलहवाँ परिच्छेद
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राजा समुद्रविजयने सम्मानपूर्वक कहा :- "आपलोगोंने इस संकट के समय हमें सहायता देनेके विचारसे बिना बुलाये ही यहाँ आनेका जो कष्ट उठाया है, तदर्थ मैं आपलोगोंको अन्तःकरणसे धन्यवाद देता हूँ। मैं सदैव आपका स्मरण रखूँगा और आपके योग्य कोई कार्य दिखायी देगा, तो अवश्य आपको कष्ट दूँगा ।
यह सुनकर हेचर राजा बहुत ही प्रसन्न हुए । उन्होंने पुनः हाथ जोड़कर कहा :- "हे राजन् आप स्वयं युद्ध - निपुण हैं, इसलिये आपको किसी प्रकारकी सलाह देना - आपका अपमान करना है । फिर भी एक बात आपसे निवेदन कर देना हम अपना कर्तव्य समझते हैं । वह यह कि राजा जरासन्धसे आपलोगोंको
बड़ानेकी जरा भी जरूरत नहीं । उसे पराजित करनेके लिये अकेले कृष्ण ही पर्याप्त हैं । परन्तु वैताढ्य पर्वत पर कुछ ऐसे विद्याधर रहते हैं, जो उसके परम आज्ञाकारी हैं । यदि वे यहाँ आ जायेंगे, तो उनसे जीतना बहुत कठिन हो जायगा । यदि आप प्रद्युम्न और शाम्व सहित वसुदेवको हमारा सेनापति बना दें, तो हमलोग