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"नेमिनाथ-चरित्र द्वारिकासे पैंतालिस योजन दूर निकल जाने पर सिनपल्ली नामक एक ग्राम मिला। वहींपर वे अपनी सेनाके साथ रुक गये। , उधर जरासन्ध भी तूफानकी तरह उत्तरोत्तर समीप आता जाता था। जब उसकी और कृष्णकी सेनामें केवल चार ही योजनका अन्तर रह गया, तब कई खेचर राजा समुद्रविजयके पास आकर कहने लगे कि :"हे राजन् ! हमलोग आपके भाई वसुदेवके अधीन हैं। आपके कुलमें भगवान श्री अरिष्टनेमि, जो इच्छामात्रसे जगतकी रक्षा या क्षय कर सकते हैं, वलराम और कृष्ण, जो असाधारण बलवान हैं तथा प्रद्युम्न और शाम्ब जैसे हजारों पुत्र पौत्र भी मौजूद हैं। ऐसी अवस्था में निःसन्देह आपको किसीकी सहायता आवश्यक नहीं हो सकती। फिर भी यह समझ कर हम लोग उपस्थित हुए हैं कि शायद इस अवसर पर हमारी, कोई सेवा आपके लिये उपयोगी प्रमाणित हो। हे प्रभो! हम चाहते हैं कि आप हमें भी अपने सामन्त समझ कर, हमारे योग्य कार्यसेवा सूचित करें।" .