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दूसरा परिच्छेद
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केवली भगवानके यह वचन सुनकर सुग्रीव राजाके हृदयमें वैराग्य उत्पन्न हुआ । उन्होंने भगवानके निकट संयम लेनेकी इच्छा प्रकट की। उधर सुमित्रके हृदय में भी उथल-पुथल मच रही थी । उसने कहा :- "मुझे धिक्कार है कि माताके इस दुष्कर्म में मुझे कारण रूप चनना पड़ा। हे गुरुदेव ! छुपाकर मुझे भी इस भवसागर से पार कीजिये । मुझे भी यह संसार अब विपवत् प्रतीत होता है ।"
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पुत्रके यह वचन सुनकर राजा सुग्रीवने कहा :"हे पुत्र ! जो कुछ होना था वह तो हो चुका। अब उन बातोंके लिये सोच करना व्यर्थ है । तुम्हारी अवस्था अभी संयम लेने योग्य नहीं है। मैं तुम्हारा पिता हूँ । मेरी आज्ञा मानना तुम्हारा कर्त्तव्य है । मैं अभी तुम्हें संसार - त्याग के लिये अनुमति नहीं दे सकता । इस समय तो तुम्हें राज्य भार ग्रहण कर प्रजा - पालन करना होगा । यही इस समय मैं तुम्हें आज्ञा देता हूँ ।"
सुमित्रको पिताकी यह आज्ञा शिरोधार्य करनी राजा सुग्रीवने उसे सिंहासन पर बैठाकर चारित्र