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सोलहवाँ परिच्छेद
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लगे। जरासन्धने इन सब अशुभसूचक अपशकुनोंको देखा, किन्तु फिर भी उसने रणयानासे मुख न, मोड़ा। बल्कि यों कहना चाहिये कि उसने अपने हृदयमें इनका विचार तक न आने दिया । निर्दिष्ट समय पर कूचका डंका बजा
और जरासन्ध अपने गन्ध हस्तीपर सवार हो, अपनी. विशाल सेनाके साथ पश्चिमकी ओर चल दिया। ____जरासन्धके प्रस्थानका यह समाचार शीघ्रही कलहप्रेमी नारद मुनि और राजदूतोंने कृष्णको कह सुनाया। कृष्णने भी उसे सुनते ही रणभेरी बजा दी। जिस प्रकार सौधर्म देवलोकमें सुघोषा घण्टेका आवाज सुनकर समस्त देव एकत्र हो जाते हैं, उसी प्रकार रणभेरीका नाद सुनकर समस्त यादव और राजे इकठे हो गये। राजा समुद्रविजय इनमें सर्व प्रधान थे। उनके महानेमि, सत्यनेमि, बढ़नेमि, सुलेमि, तीर्थकर श्रीअरिष्टनेमि, जयसेन, महीजय, तेजसेन, नय, मेघ, चित्रक, गौतम, वफल्क, शिवनन्द और विष्वकसेन आदि पुत्र भी बड़े रथोंपर महारथियोंकी भॉति शोभा दे रहे थे। समुद्रविजयका छोटा भाई अक्षोभ्य भी अपने उद्धव, धव,