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नेमिनाथ- चरित्र
करनेकी आज्ञा दी, बल्कि अपनी आज्ञा मानने वाले अनेक राजा और सामन्तोंको भी अपनी अपनी सेनाके साथ इस लड़ाई में भाग लेनेके लिये निमन्त्रित किया।
जरासन्धका रण-निमन्त्रण पाकर उसके परम बलवान सहदेवादिक पुत्र, महापराक्रमी चेदिराज, शिशुपाल, राजा हिरण्यनाभ, सौ भाइयोंके बलसे गर्विष्ट कुरुवंशी राजा दुर्योधन तथा और न जाने कितने राजा और सामन्त उसकी सेनामें उसी तरह आ मिले जिस प्रकार समुद्रमें विविध नदियाँ आकर मिलती हैं ।
यथा समय समुद्र समान इस विशाल सेनाके साथ जरासन्धने राजगृहीसे प्रस्थान करनेकी तैयारी की । प्रयाण करते समय उसके शिरका मुकुट सरक पड़ा, हृदय-हार टूट गया, बायीं आँख फड़क उठी, चखके छोरमें पैर फँसकर रुक गया, सामने छींक हुई, महा भीषण सर्प रास्ता काट गया, बिल्ली भी सामनेसे निकल गयी, उसके बड़े हाथीने मलमूत्र विसर्जन कर दिया, वायु प्रतिकूल हो गया और गृद्ध शिरके ऊपर मॅडराने