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सोलहवाँ परिच्छेद . ६४५ वह कहने लगी :-"अहो! मेरे पतिदेवको मारनेवाला अब तक इस संसारमें जीवित है और राज्य कर कहा है ! मेरेलिये इससे बढ़कर दुःखका विषय और क्या हो सकता है ?"
इस प्रकार जीवयशाको विलाप करते देख, जरासन्धने उससे इसका कारण पूछा । इसपर उसने कृष्णका सब हाल उसे कह सुनाया। साथही उसने कहा:"हे तात ! मैंने कृष्णका सर्वनाश करनेकी प्रतिज्ञा की थी। वह प्रतिज्ञा पूरी न हो सकी, इसलिये अब मुझे अग्नि प्रवेश करनेकी आज्ञा दीजिये। मुझे अब यह जीवन भार रूप मालूम होता है।"
यह सुनकर जरासन्धने कहा :- हे पुत्री! तू रुदन मत कर । मैं कंसके शत्रुकी बहिनों और स्त्रियोंको अवश्य ही रुलाऊँगा।"
इसके बाद मगधपति जरासन्ध यदावोंसे युद्ध करनेकी तैयारी करने लगा। उसके चतुर मन्त्रियोंने उसे भरसक समझानेकी चेष्टा की, किन्तु उसने किसीकी एक न सुनी। उसने न केवल अपनी सेनाको ही प्रस्थान