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नेमिनाथ-चरित्र उन्होंने सत्यभामाको निराश करना उचित न समझा। चैसा करनेसे अवश्य ही उसका जी दुःखित हो जाता। कृष्णने यही सोचकर उसे भी रति-दान देना स्थिर किया। . सत्यभामाका रति समय जानकर प्रद्युम्नने इसी समय कृष्णकी भेरी वजा दी। उसकी ध्वनि सुनते ही चारों ओर खलबली मच गयी। कृष्णको मालूम हुआ कि प्रद्युमने ही सत्यभामाको छकाया है, क्योंकि सपत्नीका एक पुत्र दस सपत्नीके बराबर होता है। खैर, भवितव्यताको कौन रोक सकता है ? सत्यभामाने भीत भावसे सहवास किया है इसलिये निःसन्देह वह भीरु .पुत्रको जन्म देगी।"
दूसरे दिन सुबह कृष्ण रुक्मिणीके भवनमें गये तो वहाँ जाम्बवतीको उस दिव्य हारसे विभूषित देखा । उन्हें अपनी ओर निर्निमेष दृष्टि से देखते देखकर जाम्बवतीने कहा :-"स्वामिन् ! आज मेरी ओर आप इस तरह क्यों देख रहे हैं ? मैं तो आपकी वह पत्नी हूँ, जिसे आप अनेकवार देख चुके हैं।"