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पन्द्रहवाँ परिच्छेद प्रज्ञप्ति विद्या के बलसे उसे सत्यभामाके सदृश बना दिया। इसके बाद रुक्मिणीने सब बातें समझा कर सन्ध्याके समय उसे कृष्णकै शयनागारमें भेज दिया। कृष्णने उसे सत्यभामा समझ कर उसे सहर्ष वह हार देकर उसके साथ समागम किया। इसके बाद जाम्बवतीने सिंहका एक स्त्रम देखा और महाशुक्र देवलोकसे कैटम का जीव च्युत होकर उसके उदरमें आया। जाम्बवतीको इससे अत्यन्त आनन्द हुआ और वह मन-ही-मन रुक्मिणी तथा प्रानको धन्यवाद देती हुई अपने महलको चली गयी। ___ उधर कृष्णने दिनके समय सत्यभामासे उस हारका हाल बतला कर, रात्रिके समय उसे अपने शयनगृहमें बुलाया था। उनके इस आदेशानुसार, जाम्बवतीके चले जानेपर, सत्यभामा आ खड़ी हुई। उसे देखकर कृष्ण अपनें मनमें कहने लगे :--"अहो! स्त्रियोंमें कितनी भोगासक्ति होती हैं ? . यह अभी मेरे पाससे गयी है
और फिर मेरे पास आपहुंची है। 'साथही उन्हें यह भी विचार आया कि सत्यभामाकी रूप धारण कर पहले किसीने मुझे धोखी तो नहीं दिया है। कुछ भी हो,