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नेमिनाथ चरित्र प्रद्युम्नको अपनी प्रज्ञप्ति विद्याके कारण यह सब हाल मालूम हुआ। इसलिये उसने अपनी माताको उस हारकी बात जतला कर कहा कि :- हे माता! यदि आप मेरे समान दूसरा पुत्र चाहती हों तो किसी तरह वह हार अपने हाथ कीजिये "
रुक्मिणीने कहा :- "हे पुत्र ! मैं अकेले तुमको ही पुत्र रूपमें पाकर धन्य हो गयी हूँ। अब मुझे अन्य 'पुत्रोंकी जरूरत नहीं है।"
प्रद्युम्नने कहा :-"अच्छा, तव यह बतलाइये, कि मेरी अन्य माताओंमें कौन माता आपको अधिक प्रिय है ? जो आपको अधिक प्रिय हो और जिसे आप कहें, उसीको मैं वह हार दिलवा दूँ !"
रुक्मिणीने कहा :-हे पुत्र ! तुम्हारे वियोगसे जिस प्रकार मैं दुःखित रहती थी, उसी प्रकार जाम्बवती भी दु:खित रहती थी। तुम उसे वह हार दिला दो। उसके पुत्र होनेसे मुझे प्रसन्नता ही होगी!"
इसके बाद प्रधु सके कहनेसे रुक्मिणीने जाम्बवतीको अपने पास बुला भेजा। उसके आनेपर प्रद्युमने अपनी