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________________ नेमिनाथ चरित्र युक्ति कर दी कि, किसी तरह आग ही न सुलग सकी। इससे रुक्मिणी बहुत चिन्तित हो उठी। यह देखकर माया साधुने कहा :-"यदि मण्डु तैयार नहीं हो सकता, तो मुझे लड्डु ही दे दो। भूखके कारण मेरे प्राण निकले जा रहे हैं।" - रुक्मिणीने कहा :-"मुझे यह लड्डू देने में कोई आपत्ति नहीं है, परन्तु यह बहुत ही गरिष्ट हैं। कृष्णके सिवा इन्हें शायद ही कोई दूसरा पचा सके ! मुझे भय है कि आपको यह लड्डू खिलानेसे मुझे कहीं ब्रह्महत्याका पाप न लग जाय।" माया साधुने कहा :-"तपश्चर्याके कारण मुझे कभी अजीर्ण नहीं होता।" ___ यह सुनकर रुक्मिणी उसे डरते-डरते लड्डू देने लगी और वह एकके बाद एक अपने मुँहमें रखने लगा। उसको इस तरह अनायास लड्डू खाते देखकर रुक्मिणी को अत्यन्त आश्चर्य हुआ और उन्होंने हँसकर कहा :"धन्य है महाराज ! आप तो बड़ेही बलवान मालूम होते हैं।"
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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