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चौदहवाँ परिच्छेद
६१ नगदन पर प्रहार किया, त्योंही देवीने प्रसन्न होकर कहा:- "हे पुत्री! इतनी शीघ्रता मत कर ! जिस दिन तुम्हारे इस आम्रवृक्ष पर असमयमें धौर आयेंगे, उसी दिन तुम्हारा पुत्र तुमसे आ मिलेगा।" मैं देखती हूँ कि इस आम्रवृक्षमें तो बौर लग गये, परन्तु मेरा पुत्र न आया। इसीसे मेरा जी दुःखी है। हे महात्मन् ! लम और राशि आदिक देखकर क्या आप मुझे यह यतला सकते हैं, कि मेरा पुत्र कब आयगा ?" ___ माया साधुने कहा :-"जो मनुष्य विना कुछ भेट दिये ज्योतिषीसे प्रश्न करता है, उसे लाभ नहीं होता।"
रुक्मिणीने कहा:--'अच्छा महाराज! बतलाइये, मैं आपको क्या हूँ ?"
माया साधुने कहा:-"तपश्चर्यांके कारण मेरी पाचनशक्ति बहुत कमजोर हो गयी है, इसलिये मुझे मण्डु ( माँड ) बना दो।"
रुक्मिणीने श्रीकृष्णके लिये कुछ लड्डू बना रक्खे थे। उन्हींको तोड़ कर वह मण्डु बनानेकी तैयारी करने लगी, परन्तु माया साधुने अपनी विद्याके प्रभावसे ऐसी