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चौदहवों परिच्छेद
६९३ उधर सत्यभामा अब तक कुल देवीके सामने बैठी हुई मायाविरके आदेशानुसार मन्त्रका जप ही कर रही थी। उसका यह जप न जाने कब तक चला करता, परन्तु इतनेहीमें कुछ अनुचरोंने आकर पुकार मचायी कि :--- "हे स्वामिनी ! नगरमें आज महा अनर्थ हो गया है। फलसे लदे हुए वृक्षोंको न जाने किसने फल रहित कर दिये हैं। घासकी दुकानोंको घास रहित और जलाशयोंको भी जल रहित बना दिया है। इसके अतिरिक्त भानुकको न जाने किसने एक उत्पाती अश्व दे दिया, जिसपर बैठनेसे उनकी दुर्गति हो गयी। पता लगाने पर न उस घोड़ेका ही पता मिलता है, न उसके मालिकका हीं। हमलोग इन सब घटनाओंसे पूरी तरह परेशान हो रहे हैं।" ____ यह सब बात सुनकर सत्यमामाका ध्यान भंग हुआ। उसने दासियोंसे पूछा :-"वह ब्राह्मण कहाँ है ?" उत्तरमें दासियोंने डरते डरते उसके भोजन करने और नाराज होकर चले जानेका हाल उसे कह सुनाया। इससे सत्यभामा मन-ही-मन जल कर खाक हो गयी। उसे