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चौदहवाँ परिच्छेद जा रहे हैं, तो यह सब तरकारी फेंक देनेसे इसके पीछे . न जाने कितने जीवोंकी हत्या होगी। इससे तो यही
अच्छा है, कि मैं अकेला ही इसे खाकर मर जाऊँ ! ऐसा करने पर अन्य जीवोंके लिये कोई खतरा न रहेगा।"
इसप्रकार निश्चयकर धर्मरुचिने स्वस्थचित्तसे प्रसन्नतापूर्वक वह शाक खा डाला। इसके बाद सम्यक् प्रकारसे आराधना कर, समाधिपूर्वक उन्होंने प्राण त्याग दिये। अपने पुण्य-प्रभावके कारण मृत्युके बाद सर्वार्थ सिद्धके अनुत्तर विमानमें वे अहमिन्द्र नामक देव हुए। ___ इधर धर्मरुचिको वापस आनेमें जब बड़ी देर हुई, तव धर्मघोष सरिको उनके लिये चिन्ता हुई और उन्होंने अन्यान्य साधुओंको उनका पता लगानेके लिये भेजा। वे पता लगाते हुए शीघ्र ही उस स्थानमें जा पहुँचे, जहाँ धर्मरुचिका मृत शरीर पड़ा हुआ था। वे उनके रजोहरणादिक लेकर गुरुदेवके पास लौट आये और उनको सारा हाल कह सुनाया। गुरुदेवने अतिशय ज्ञान द्वारा नागश्रीका दुश्चरित्र जानकर सब बाते अपने साधुओंको कह सुनायीं। साधु और साध्वियोंको