________________
५६८
नेमिनाथ- चरित्र
उद्यानमें ज्ञानवान् धर्मघोष सूरिका आगमन हुआ | सोमदेवादिके चले जाने पर उनका धर्मरुचि नामक शिष्य सोमश्रीके घर आया । उसे पारणके लिये आहार की जरूरत थी । इसलिये नागश्रीने वह कड़वी तरकारी उसीको दे दी । उसे देखकर धर्मरुचिको परम सन्तोष हुआ और उसने समझा कि भिक्षामें आज मुझे अपूर्व पदार्थ मिला है। उसने प्रसन्नतापूर्वक गुरुदेव के पास जाकर उनको वह तरकारी दिखायी । गुरुदेवने उसकी गन्धसे ही उसका दोष जानकर कहा :- " हे वत्स !
मृत्यु हो जायगी ।
आहार लाकर यत्न
यदि तू इसे भक्षण करेगा, तो तेरी इसे तुरन्त फेंक दे और कोई दूसरा
""पूर्वक पारण कर ।"
गुरुदेव का यह वचन सुनकर धर्मरुचि वह तरकारी "फेंकने के लिये उद्यानसे कुछ दूर जंगलमें गया । वहाँ उसने तरकारीका एक कण जमीन पर गिरा दिया । थोड़ी देर में उसने देखा कि उसमें लगनेवाली समस्त चिउंटियाँ मरी जा रही हैं। यह देखकर उसने अपने मनमें कहा :- "यदि इसके एक कणसे इतने जाव मरे
2